सतना- हल षष्ठी का पर्व संतान के दीर्घायु एवं मनचाही संतान पाने के लिए व्रत रखकर छठी माता कि पुजा करते हुए महिलाओं ने धुमधाम से मनाया। जन्माष्टमी के पहले रखा जाने वाला यह व्रत खास होता है क्योंकि इस दिन भगवान कृष्ण के भाई बलराम का जन्म हुआ था। बलराम जी का प्रमुख शस्त्र हल और मूशल हैं इसलिए इस पर्व को हल षष्ठी के नाम से जाना जाता है। आज के दिन हल कि पुजा एवं घर के आंगन कि दिवाल पर छठी माता का चित्र बनाकर रूई, सिंदूर आदि सजाकर गोबर रखकर छठी माता, गणेश जी एवं मां गौरा कि पुजा महिलाओं द्वारा कि जाती है। चना, जौ, धान, गेंहू, मूंग, महुआ, अरहर, मक्का का भोग माता को लगाया जाता है। पुराने लोगों के अनुसार पहले महिलाएं घर में एक छोटा सा तालाब बनाती थी एवं उसमें झरबेरी, पलाश, कांसी के पेड लगाकर हल षष्ठी कि कथा सुनती थीं क्योंकि मान्यता के अनुसार व्रत और पूजा करने से भगवान बलराम उनकी संतान को लंबी आयु एवं मनचाही संतान का आशीर्वाद देते हैं। इस दिन हल से जुडी हुई चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए, कहा जाता है कि दुध और हल से जुडी चीजें नहीं खाने से व्रत पूर्ण नहीं होता है। यह व्रत पुत्र आवम एवं पुत्र वती दोनों महिलाएं कर सकती हैं इसके आलावा गर्भवती और संतान प्राप्ति कि इच्छा रखने वाली महिलाएं भी इस व्रत को कर सकती हैं। यह पर्व छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश में महिलाओं द्वारा धूमधाम से मनाया जाता है।
संतान दिर्घायु के लिए करते हैं- अनीता
शहर निवासी अनीता पांडे ( 58 वर्ष ) ने बताया हम लोग यह व्रत संतान कि दिर्घायु के लिए मनाते हैं छठी माता का व्रत रखकर उनकी पुजा करके मनाते हैं। पहले के जमाने में गांव में आस पडोस कि महिलाएं यह पर्व साथ मिलकर मनाती थी पर जमाना आगे बढने के वजह से महिलाएं अपने अपने घरों तक सिमित रह कर यह पर्व मनाती हैं।
छठी माता के साथ हल कि भी पुजा करते हैं- प्रिती
प्रिती गौतम ( 45 वर्ष ) कहती हैं छठी माता कि पुजा के साथ हल कि पुजा करने का विशेष महत्व होता है क्योंकि भगवान कृष्ण के बडे भाई बलराम का आज जन्म हुआ था उनका शस्त्र हल और मूशल है इसलिए मान्यता के अनुसार हल कि पुजा करने से भगवान बलराम द्वारा संतान दिर्घायु और मनचाही संतान का आशीर्वाद प्राप्त होता है।