वोकल फॉर लोकल
नई दिल्ली. स्थानीय कला समुदायों की पहचान, इतिहास और साझा अनुभवों का प्रतिबिंब है। स्थानीय कला हस्तशिल्प से लेकर पारंपरिक वस्त्रों और जीवंत चित्रों तक अपने क्षेत्र की अनूठी भावना को दर्शाते हुए पीढ़ियों से चली आ रही कौशल और कहानियों को आगे बढ़ाती है।
दिव्य कला मेला स्थानीय कला को जीवंत मंच प्रदान करता है, जहां रचनात्मकता उद्देश्य से मिलती है। कलात्मक प्रतिभा को प्रदर्शित करने से परे, यह मेला उन कलाकारों की अदम्य भावना को दर्शाता है, जो इन परंपराओं को संरक्षित करते हुए सशक्तिकरण और समावेशन का मार्ग प्रशस्त करते हैं।
दिव्य कला मेले में नीलम मकवाना
गुजरात की नीलम नरेशभाई मकवाना दृढ़ता और सशक्तिकरण का एक शानदार उदाहरण है। सिर्फ 7वीं कक्षा तक पढ़ाई करने के बावजूद, नीलम की जन्मजात प्रतिभा और उद्यमशीलता ने पीतल-ऑक्सीडाइज़्ड आभूषण बनाने वाली एक निर्माता के रूप में उनकी अलग पहचान बनाई। नीलम का दूसरों के लिए अवसर पैदा करने का उनका समर्पण उन्हें अलग बनाता है। नीलम गुजरात में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के एक समूह सहित कई लोगों को इसी तरह के आभूषण बनाने और बेचने के लिए प्रशिक्षित करती हैं, और उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाती हैं। नीलम के लिए सशक्तिकरण कोई बाधा नहीं है, यह एक ऐसा अवसर है जिसका हर कोई हकदार है, उनका काम न केवल हस्तनिर्मित आभूषणों की पारंपरिक कला को संरक्षित करता है, बल्कि हाशिए पर रह रहे समूहों का उत्थान भी करता है और समावेश की सच्ची भावना को मजबूत बनाता है।
दिव्य कला मेले में मोहम्मद सलीम का स्टॉल
उत्तर प्रदेश का मोहम्मद सलीम पिछले छह-सात साल से धातु की लालटेन बनाने की पारंपरिक कला को संरक्षित कर रहे हैं। 10-15 दिव्यांग श्रमिकों की एक टीम का नेतृत्व करते हुए, सलीम धातु के उत्पाद बनाते हैं, जो घरों और जीवन को रोशन करते हैं। उनके प्रयास कलात्मकता से परे हैं; वे दिव्यांग व्यक्तियों को रोजगार के अवसर प्रदान करते हैं और युवा पीढ़ी को इस कालातीत शिल्प में प्रशिक्षित करते हैं। सलीम का काम दिव्यांग कारीगरों के लिए स्थायी आजीविका का निर्माण करते हुए स्थानीय धातुकर्म परंपराओं के अस्तित्व को सुनिश्चित करता है।
दिव्य कला मेले में प्रणय देव का स्टॉल
असम के प्रणय चंद्र देव अपने हाथ से बने बांस के थैलों के माध्यम से पर्यावरण-चेतना को सांस्कृतिक संरक्षण के साथ जोड़ते हैं। 50 कारीगरों की एक टीम के साथ प्रणय टिकाऊ और स्टाइलिश उत्पाद बनाते हैं, जो असम की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को दर्शाते हैं। दिव्य कला मेला उन्हें राष्ट्रीय दर्शकों तक पहुंचने के लिए एक मंच प्रदान करता है, जहां वे अपनी टीम की कलात्मकता और समर्पण को प्रदर्शित करते हैं। पारंपरिक बांस शिल्प को बढ़ावा देकर, प्रणय न केवल असम की सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करते हैं बल्कि कारीगरों को रोजगार और पहचान भी दिलाते हैं।
12 दिसंबर से 22 दिसंबर, 2024 तक नई दिल्ली के इंडिया गेट पर आयोजित 22 वां दिव्य कला मेला दृढ़ता, दृढ़ संकल्प और सांस्कृतिक विरासत का जीवंत उत्सव है। 20 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लगभग 100 दिव्यांग उद्यमियों और कारीगरों की कला को दर्शाता यह कार्यक्रम रचनात्मकता और सशक्तिकरण के बीच तालमेल को उजागर करता है। “वोकल फॉर लोकल” की भावना को मूर्त रूप देते हुए , दिव्य कला मेला विकलांग व्यक्तियों के लिए आर्थिक अवसरों को बढ़ावा देते हुए सांस्कृतिक परंपराओं और स्थानीय कला के संरक्षण को महत्व देता है। स्थानीय कारीगरों को राष्ट्रीय दर्शकों से जोड़कर यह मेला सांस्कृतिक विरासत को सुरक्षित रखने और बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह मेला न केवल भारत की विविध कलात्मक परंपराओं को प्रदर्शित करता है बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि उन्हें संजोया जाए और लोगों के साथ साझा किया जाए।