संविधान अपनाने की 75वीं वर्षगांठ पर विशेष चर्चा
नई दिल्ली। हम सब के लिए और सभी देशवासियों के लिए इतना ही नहीं विश्व के लोकतंत्र प्रेमी नागरिकों के लिए भी हमारे लिए यह बहुत ही गौरव का पल है। संविधान के 75 वर्ष की यात्रा यादगार यात्रा और विश्व के सबसे महान और विशाल लोकतंत्र की यात्रा, इसके मूल में हमारे संविधान निर्माताओं की दिव्य दृष्टि हमारे संविधान निर्माताओं का योगदान और जिसको लेकर के आज हम आगे बढ़ रहे हैं, यह 75 वर्ष पूर्ण होने पर एक उत्सव मनाने का पल है। मेरे लिए खुशी की बात है कि संसद भी इस उत्सव में शामिल होकर के अपनी भावनाओं को प्रकट करेगा। मैं सभी माननीय सदस्यों का आभार व्यक्त करता हूं। जिन्होंने इस उत्सव के अंदर हिस्सा लिया, मैं उन सब का अभिनंदन करता हूं। यह बातें प्रधानमंत्री ने संवोधन के 75 वर्ष पूर्ण होने पर संसद में हुई चर्चा का जवाब देते हुए कही। उन्होंने कहा कि मैं आज यहां किसी के व्यक्तिगत आलोचना नहीं करना चाहता हूं लेकिन तथ्यों को देश के सामने रखना जरूरी है और इसलिए मैं तथ्यों को रखना चाहता हूं। कांग्रेस के एक परिवार ने संविधान को चोट पहुंचाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। और मैं इसलिए इस परिवार का उल्लेख करता हूं कि 75 साल की हमारी यात्रा में 55 साल एक ही परिवार ने राज किया है। इसलिए देश को क्या-क्या हुआ है यह जानने का अधिकार है और इस परिवार के कुविचार कुरीति कुनीति इसकी परंपरा निरंतर चल रही है। हर स्तर पर इस परिवार ने संविधान को चुनौती दी है।
संविधान के 75 वर्ष की यात्रा असाधारण है: उन्होंने कहा कि संविधान के 75 वर्ष की यात्रा और उपलब्धि साधारण नहीं है, असाधारण है और जब देश आजाद हुआ और उसे समय भारत के लिए जो जो संभावनाएं व्यक्त की गई थी उन सभी संभावनाओं को निरस्त करते हुए परास्त करते हुए भारत का संविधान हमें यहां तक ले आया है और इसलिए इस महान उपलब्धि के लिए संविधान निर्माताओं के साथ-साथ मैं देश के कोटि-कोटि नागरिकों का आदर पूर्वक नमन करता हूं। जिन्होंने इस भावना को, इस नई व्यवस्था को जी करके दिखाया है।
हम लोकतंत्र की जननी हैं : भारत का लोकतंत्र भारत का गणतांत्रिक अतीत बहुत ही समृद्ध रहा है। विश्व के लिए प्रेरक रहा है और तभी तो भारत आज मदर ऑफ डेमोक्रेसी के रूप में जाना जाता है। हम सिर्फ विशाल लोकतंत्र है इतना नहीं, हम लोकतंत्र की जननी हैं । मैं यह जब कह रहा हूं तो मैं तीन महापुरुषों के कोट इस सदन के सामने प्रस्तुत करना चाहता हूं। राजऋषि पुरुषोत्तम दास टंडन जी, मैं संविधान सभा में हुई चर्चा को लेकर उल्लेख कर रहा हूं। उन्होंने कहा था सदियों के बाद हमारे देश में एक बार फिर ऐसी बैठक बुलाई गई है यह हमारे मन में अपने गौरवशाली अतीत की याद दिलाती है। जब हम स्वतंत्र हुआ करते थे, जब सभाएं आयोजित की जाती थी, जिसमें विद्वान लोग देश के महत्वपूर्ण मामलों पर चर्चा करने के लिए मिला करते थे। दूसरा कोट में पढ़ रहा हूं डॉक्टर राधाकृष्णन जी का। वे भी इस संविधान सभा के सदस्य थे। उन्होंने कहा था इस महान राष्ट्र के लिए गणतांत्रिक व्यवस्था नई नहीं है। हमारे यहां यह इतिहास के शुरुआत से ही है और तीसरा कोर्ट में बाबा साहब अंबेडकर का कह रहा हूं। बाबा साहब अंबेडकर जी ने कहा था – ऐसा नहीं है कि भारत को पता नहीं था कि लोकतंत्र क्या होता है। एक समय था जब भारत में कई गणतंत्र हुआ करते थे।
भारत के राष्ट्रपति के पद पर एक आदिवासी महिला विराजमान है: उन्होंने कहा हमारे संविधान के निर्माण की प्रक्रिया में हमारे देश की नारी शक्ति ने संविधान को सशक्त करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी। संविधान सभा में 15 माननीय महिला सदस्य थीं और सक्रिय सदस्य थीं। मौलिक चिंतन के आधार पर उन्होंने संविधान सभा की डिबेट को समृद्ध किया था और वह सभी बहने अलग-अलग बैकग्राउंड की थीं, अलग-अलग क्षेत्र की थीं। हम सभी सांसदों ने मिलकर के एक स्वर से नारी शक्ति वंदन अधिनियम पारित करके हमारी महिला शक्ति को भारतीय लोकतंत्र में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए हम लोगों ने कदम उठाए।आज हम देख रहे हैं हर बड़ी योजना के सेंटर में महिलाएं होती हैं और यह जब संविधान के हम 75 वर्ष मना रहे हैं। यह संयोग है और अच्छा संयोग हैं कि भारत के राष्ट्रपति के पद पर एक आदिवासी महिला विराजमान है। यह हमारे संविधान की भावना की एक अभिव्यक्ति भी है।
जब हम आजादी शताब्दी बनाएंगे, हम इस देश को विकसित भारत बना करके रहेंगे : प्रधानमंत्री ने कहा अब भारत देश बहुत तेज गति से विकास कर रहा है। भारत बहुत ही जल्द विश्व की तीसरी बड़ी आर्थिक शक्ति बनने की दिशा में बहुत मजबूत कदम रख रहा है, और इतना ही नहीं ये 140 करोड़ देशवासियों का संकल्प है कि जब हम आजादी शताब्दी बनाएंगे, हम इस देश को विकसित भारत बना करके रहेंगे यह हर भारतीय का संकल्प है, यह हर भारतीय का सपना है। लेकिन इस संकल्प से सिद्धि के लिए सबसे बड़ी आवश्यकता है वह है भारत की एकता। हमारा संविधान भी भारत की एकता का आधार है। बाबा साहब अंबेडकर जी ने चेताया था, मैं बाबा साहब का कोट पढ़ रहा हूं। बाबा साहब अंबेडकर ने कहा था – समस्या यह है कि देश में जो विविधता से भारत जन मानस है उसे किस तरह एक मत किया जाए। कैसे देश के लोगों को एक दूसरे के साथ होकर निर्णय लेने के लिए प्रेरित किया जाए। जिससे कि देश में एकता की भावना स्थापित हो।
देश की एकता के मूल भाव पर प्रहार किया गया : प्रधानमंत्री ने कहा आजादी के बाद विकृत मानसिकता के कारण या स्वार्थवश अगर सबसे बड़ा प्रहार हुआ तो देश की एकता के मूल भाव पर प्रहार हुआ। विविधता में एकता यह भारत की विशेषता रही है। हम विविधता को सेलिब्रेट करते हैं और इस देश के प्रगति भी विविधता को सेलिब्रेट करने में है। लेकिन गुलामी की मानसिकता में पले बढ़े लोगों ने, भारत का भला न देख पाने वाले लोगों ने और जिनके लिए हिंदुस्तान 1947 में ही पैदा हुआ, जो धारणा बनी थी, उनके लिए वो विविधता में विरोधाभास ढूंढते रहे। इतना ही नहीं विविधता के इस अमूल्य खजाना है हमारा उसको सेलिब्रेट करने के बजाय उस विविधता में ऐसे जहरीले बीज बोने के प्रयास करते रहे ताकि देश की एकता को चोट पहुंचे।
धारा 370 को हमने जमीन में गाड़ दिया: प्रधानमंत्री ने कहा पिछले 10 साल देश की जनता ने जो हमें सेवा करने का मौका दिया है। उस हमारे निर्णयों की प्रक्रिया को देखेंगे, तो भारत की एकता को मजबूती देने का निरंतर हम प्रयास करते रहे हैं। आर्टिकल 370 देश की एकता में रुकावट बन पड़ा था, दीवार बन पड़ा था। देश की एकता हमारी प्राथमिकता थी जो कि हमारे संविधान के भावना थी और इसलिए धारा 370 को हमने जमीन में गाड़ दिया। क्योंकि देश एकता हमारी प्राथमिकता है। प्रधानमंत्री ने कहा मैं समझता हूं इकोनामिक यूनिटी के लिए जीएसटी ने बहुत बड़ी भूमिका अदा की है। उस समय पहले की सरकार का भी कुछ योगदान है। वर्तमान समय में हमें इसको आगे बढ़ने का अवसर मिला और हमने इसको किया और वो भी वन नेशन वन टैक्स उस भूमिका को आगे बढ़ा रहा है।
प्रधानमंत्री ने कहा देश के गरीब को, देश के सामान्य नागरिक को, अगर मुफ्त में इलाज मिले तो गरीबी से लड़ने की उसकी ताकत अनेक गुना बढ़ जाती है। इसलिए देश की एकता के मंत्र को जीने वाले हम लोगों ने यह तय किया कि वन नेशन वन हेल्थ कार्ड और इसलिए हमने आयुष्मान भारत घोषणा की है। आज बिहार के दूर दराज क्षेत्र का व्यक्ति भी अगर पुणे में कुछ काम कर रहा है और अचानक बीमार हो गया है तो उसके लिए आयुष्मान कार्ड होना बहुत इनफ है, उसकी सेवा मिल सकती है।
हमारे देश में इंफ्रास्ट्रक्चर में भी भेदभाव की बू आती रही है: प्रधानमंत्री ने आगे कहा हमारे देश में इंफ्रास्ट्रक्चर में भी भेदभाव की बू आती रही है। हमने उसे मिटा करके देश की एकता को ध्यान में रखते हुए एक संतुलित विकास को ध्यान में रखते हुए हमने उस भेदभाव, उस भावना को खत्म करके एकता को मजबूत किया। हमने नॉर्थ ईस्ट हो या जम्मू कश्मीर हो, हिमालय के गोद के इलाके हो या रेगिस्तान के सटे हुए इलाके हो, हमने पूरी तरह इंफ्रास्ट्रक्चर को एक सामर्थ्य देने का प्रयास किया है। ताकि एकता के भाव को अभाव में से कारण कोई दूरी पैदा ना हो उसमें से बदलने का हमने काम किया है।
संविधान के 25 वर्ष पूरे हुए तो आपातकाल लगाया गया ; प्रधानमंत्री ने आगे कहा जब देश संविधान के 25 वर्ष पूरे कर रहा था। उसी समय हमारे देश में संविधान को नोच लिया गया था। इमरजेंसी आपातकाल लाया गया, संवैधानिक व्यवस्थाओं को समाप्त कर दिया गया, देश को जेल खाना बना दिया गया, नागरिकों के अधिकारों को लूट लिया गया, प्रेस के स्वतंत्रता को ताले लगा दिए गए और कांग्रेस के माथे पर यह जो पाप है वह कभी भी धुलने वाला नहीं है। दुनिया में जब-जब लोकतंत्र की चर्चा होगी कांग्रेस के माथे का यह पाप कभी धुलने वाला नहीं है। क्योंकि लोकतंत्र का गला घोट दिया गया था। भारत का संविधान निर्माता के तपस्या को मिट्टी में मिलने की कोशिश की गई थी।
नेहरू ने एक मुख्यमंत्री को चिट्ठी में लिखा था – संविधान हमारे रास्ते में आ जाए तो हर हाल में संविधान में परिवर्तन करना चाहिए: प्रधानमंत्री ने आगे कहा 1952 के पहले राज्यसभा गठन नहीं हुआ था। राज्यों में भी कोई चुनाव नहीं थे। जनता का कोई आदेश नहीं था। 1951 में जब चुनी हुई सरकार नहीं थी उन्होंने ऑर्डिनेंस से संविधान को बदला। अपने मन की चीजें जो संविधान सभा के अंदर नहीं करवा पाए, वो उन्होंने पिछले दरवाजे से की और वह भी चुनी हुई सरकार के वो प्रधानमंत्री नहीं थे, उन्होंने पाप किया था। इतना ही नहीं, उसी दौरान, उस समय के प्रधानमंत्री पंडित नेहरू जी ने मुख्यमंत्री को एक चिट्ठी लिखी थी। उस चिट्ठी में उन्होंने लिखा था, अगर संविधान हमारे रास्ते के बीच में आ जाए तो हर हाल में संविधान में परिवर्तन करना चाहिए । संविधान संशोधन करने का ऐसा खून कांग्रेस के मुंह लग गया कि समय-समय पर वह संविधान का शिकार करती रही। इतना ही नहीं संविधान के स्पिरिट को लहू लूहान करती रही।
करीब 6 दशक में 75 बार संविधान बदला गया: प्रधानमंत्री ने आगे कहा जो बीज देश के पहले प्रधानमंत्री जी ने बोया था उस बीज को खाद्य पानी देने का काम एक और प्रधानमंत्री ने किया उनका नाम था श्रीमती इंदिरा गांधी। 1971 में सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला आया था। उस सुप्रीम कोर्ट के फैसले को संविधान बदलकर के पलट दिया गया और 1971 में यह संविधान संशोधन किया गया था। अदालत के सारे अधिकारों को छीन लिया गया था।
इमरजेंसी में लोगों के अधिकार छीन लिए गए, न्यायपालिका का गला घोट दिया गया: प्रधानमंत्री ने आगे कहा जब इंदिरा जी के चुनाव को को खारिज कर दिया और उनको एमपी पद छोड़ने की नौबत आई, तो उन्होंने गुस्से में आकर के देश पर इमरजेंसी थोप दी और 1975 में 39वां संशोधन करके व्यवस्था बना दी कि राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, अध्यक्ष के चुनाव के खिलाफ कोई कोर्ट में जा ही नहीं सकता है। इमरजेंसी में लोगों के अधिकार छीन लिए गए। देश के हजारों लोगों को जेलों में ठूंस दिया गया। न्यायपालिका का गला घोट दिया गया।
जस्टिस एच आर खन्ना मुख्य न्यायाधीश नहीं बनने दिया : प्रधानमंत्री ने आगे कहा अखबारों की स्वतंत्रता पर ताले लगा दिए गए। इतना ही नहीं कमिटेड ज्यूडिशरी इस विचार को उन्होंने पूरी ताकत दी और इतना ही नहीं जिस जस्टिस एच आर खन्ना ने उनके चुनाव में उनको उनके खिलाफ जो जजमेंट दिया था, वो इतना गुस्सा भरा था, कि जब जस्टिस एच आर खन्ना जो सीनियरिटी के आधार पर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बनने थे। जिन्होंने संविधान का सम्मान करते हुए उसे स्पिरिट से इंदिरा जी को सजा दी थी, उन्होंने मुख्य न्यायाधीश नहीं बनने दिया यह संवैधानिक लोकतांत्रिक प्रक्रिया रही।
प्रधानमंत्री ने आगे कहा यही नहीं राजीव गांधी जी प्रधानमंत्री बनें। उन्होंने संविधान को एक और गंभीर झटका दे दिया। सुप्रीम कोर्ट ने शाह बानो का जजमेंट दिया था। लेकिन उस समय के प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने शाह बानो की उस भावना को सुप्रीम कोर्ट में उस भावना को नकार दिया और उन्होंने वोट बैंक की राजनीति के खातिर संविधान की भावना को बलि चढ़ा दिया और कट्टरपंथियों के सामने सर झुकाने का काम कर दिया। उन्होंने संसद में कानून बनाकर के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को फिर एक बार पलट दिया गया। बात वहां तक नहीं अटकी है। नेहरू जी ने शुरू किया, इंदिरा जी ने आगे बढ़ाया और राजीव जी ने भी उसको ताकत दी। अगली पीढ़ी भी इसी खिलवाड़ में डूबी पड़ी है। एक किताब को मैं quote कर रहा हूं। उस किताब में जो लिखा गया है और उसमें एक प्रधानमंत्री उस समय के मेरे पहले जो प्रधानमंत्री थे, उनको quote किया है। उन्होंने कहा है, मुझे ये स्वीकार करना होगा कि पार्टी अध्यक्ष सत्ता का केंद्र है। ये मनमोहन सिंह जी ने कहा है जो इस किताब में लिखा गया है। मुझे ये स्वीकार करना होगा कि पार्टी अध्यक्ष सत्ता का केंद्र है। सरकार पार्टी के प्रति जवाबदेह है। इतिहास में पहली बार…इन्होंने तो प्रधानमंत्री के ऊपर एक गैर संवैधानिक और जिसने कोई शपथ भी नहीं लिया था, नेशनल एडवाइजरी काउंसिल पीएमओ के भी ऊपर बैठा दिया। पीएमओ के ऊपर अघोषित दर्जा दे दिया गया। यही नहीं संविधान का अपमान करने वाले अहंकार से भरे लोगों ने पत्रकारों के सामने कैबिनेट के निर्णय को फाड़ दिया।प्रधानमंत्री ने आगे कहा मैं जो कुछ भी कह रहा हूं वो संविधान के साथ क्या हुआ उसी की बात कर रहा हूं। उस समय करने वाले पात्रों को लेकर किसी को परेशानी होती होगी लेकिन बात संविधान की है। मेरे मन के और मेरे विचारों को मैं अभिव्यक्त नहीं कर रहा हूं।
प्रधानमंत्री ने आगे कहा बाबा साहब आंबेडकर इनके प्रति भी इनके मन में कितना कटुता भरी थी, कितना द्वेष भरा था, मैं आज उसके डिटेल में जाना नहीं चाहता हूं लेकिन जब अटल जी की सरकार थी तब बाबा साहब आंबेडकर जी के स्मृति में एक स्मारक बनवाना तय हुआ, अटल जी के समय में ये हुआ। दुर्भाग्य देखिए 10 वर्ष यूपीए की सरकार हुई, उसने इस काम नहीं किया, ना होने दिया। बाबा साहब आंबेडकर का जब हमारी सरकार आई, बाबा साहब आंबेडकर के प्रति हमारा श्रद्धा होने के कारण हमने अलिपुर रोड पर बाबा साहब मेमोरियल बनवाया और उसका काम किया। आरक्षण की कथा बहुत लंबी है। नेहरू जी से लेकर के राजीव गांधी तक कांग्रेस के प्रधानमंत्रियों ने आरक्षण का घोर विरोध किया है। हिस्ट्री कह रही है, आरक्षण के विरोध में लंबी-लंबी चिट्ठियां स्वयं नेहरू जी ने लिखी है, मुख्यमंत्रियों को लिखी हैं। इतना ही नहीं सदन में आरक्षण के खिलाफ लंबे-लंबे भाषण इन लोगों ने किए हैं।
प्रधानमंत्री ने आगे कहा एक ज्वलंत विषय है जिसकी भी मैं चर्चा करना चाहता हूं और वो ज्वलंत विषय समान नागरिक संहिता, यूनिफॉर्म सिविल कोड! ये विषय भी संविधान सभा के ध्यान बाहर नहीं था। संविधान सभा ने इस यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर के लंबी चर्चा की, गहन चर्चा की और उन्होंने बहस के बाद निर्णय किया कि अच्छा होगा कि जो भी सरकार चुनकर के आए, वो उसका निर्णय करे और देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करे। ये संविधान सभा का आदेश था और बाबा साहब आंबेडकर ने कहा था, जो लोग संविधान को समझते नहीं है, देश को समझते नहीं है, सत्ता भूख के सिवा कुछ पढ़ा नहीं है। उनको पता नहीं है बाबा साहब ने क्या कहा था। बाबा साहब ने कहा था धार्मिक आधार पर बने, ये मैं बाबा साहब की बात कर रहा हूं। ये इतना वीडियो कट करके घुमाना मत! बाबा साहब ने कहा था, धार्मिक आधार पर बने, पर्सनल लॉ को खत्म करने की बाबा साहब ने जोरदार वकालत की थी।
अटल जी भी एक वोट व्यवस्था करके सरकार बचा सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया : प्रधानमंत्री ने आगे कहा मैं उदाहरण देना चाहता हूं, 1996 में सबसे बड़े दल के रूप में भारतीय जनता पार्टी जीत करके आई, सबसे बड़ा दल था और राष्ट्रपति जी ने संविधान की भावना तहत सबसे बड़े दल को प्रधानमंत्री की शपथ के लिए बुलाया और 13 दिन सरकार चली। अगर हमें संविधान के स्पिरिट के प्रति हमारी भावना ना होती तो हम भी यह बांटो, वो बांटो, ये दे दो, वो दे दो। इसको डेप्युटी पीएम बना दो, इसको ढिकना बना दो। हम भी सत्ता सुख भोग सकते थे, लेकिन अटल जी ने सौदेबाजी का रास्ता नहीं चुना, संविधान के सम्मान का रास्ता चुना और 13 दिन के बाद इस्तीफा देना स्वीकार कर दिया। यह ऊंचाई है हमारे लोकतंत्र की। इतना ही नहीं 1998 में एनडीए की सरकार थी। सरकार चल रही थी लेकिन कुछ लोगों को हम नहीं तो कोई नहीं यह जो एक परिवार का खेल चला है, अटल जी के सरकार को स्थिर करने के लिए खेल चले गए, वोट हुआ खरीद फरोख्त तब भी हो सकती थी, बाजार में माल तब भी बिकता था। लेकिन संविधान की भावना के प्रति समर्पित अटल बिहारी वाजपयी जी की सरकार ने एक वोट से हारना पसंद किया, इस्तीफा दिया, लेकिन असंवैधानिक पद स्वीकार नहीं किया। यह हमारा इतिहास है, यह हमारे संस्कार है, यह हमारी परंपरा है और दूसरी तरफ अदालत ने भी जिस पर ठप्पा मार दिया कैश फॉर वोट का कांड एक लघुमति सरकार को बचाने के लिए संसद में नोटों के ढेर रखे गए। असंवैधानिक तरीका सरकार बचाने के लिए भारत के लोकतंत्र की भावना को बाजार बना दिया गया। वोट खरीदे गए।
हमने भी संविधान संशोधन किए लेकिन देश की एकता अखंडता के लिए, देश के उज्जवल भविष्य के लिए: 2014 के बाद एनडीए को सेवा का मौका मिला। संविधान और लोकतंत्र को मजबूती मिली। यह पुरानी जो बीमारियां थी उस बीमारी से मुक्ति का हमने अभियान चलाया। बीते 10 साल यहां से पूछा गया हमने भी संविधान संशोधन किए। जी हां हमने भी संविधान संशोधन किए हैं। देश की एकता के लिए, देश के अखंडता के लिए, देश के उज्जवल भविष्य के लिए और संविधान की भावना के प्रति पूर्ण समर्पण के साथ किए है। हमने संविधान संशोधन किया क्यों किया, इस देश का ओबीसी समाज तीन-तीन दशक से ओबीसी कमिशन को संवैधानिक दर्जा देने के लिए मांग कर रहा था। ओबीसी के सम्मान के लिए उसको संवैधानिक दर्जा देने के लिए हमने संविधान संशोधन किया है, हमें गर्व है यह करने का। समाज के दबे कुचले लोगों को उनके साथ खड़े होना यह हम अपना कर्तव्य मानते हैं इसलिए संविधान संशोधन किया गया। हमने संविधान संशोधन किया सामान्य जन के गरीब परिवार के 10% और आरक्षण का किया। और यह पहला आरक्षण का संशोधन था देश में कोई विरोध का स्वर नहीं उठा, हर किसी ने प्यार से उसको स्वीकार किया, संसद ने भी सहमति के साथ पारित किया। क्योंकि समाज की एकता की उसमें ताकत पड़ी थी। संविधान की भावनाओं का भाव पड़ा था। सबने सहयोग किया था तब जाकर यह हुआ था।
हमने संविधान में संशोधन किया महिलाओं को शक्ति देने के लिए: प्रधानमंत्री ने आगे कहा जी हां हमने भी संविधान में संशोधन किए हैं। लेकिन हमने संविधान में संशोधन किया महिलाओं को शक्ति देने के लिए। सांसद और विधानसभा में और संसद का पुराना भवन गवाह है जब देश महिलाओं को आरक्षण देने के लिए आगे बढ़ रहा था और कानून बिल पेश हो रहा था, तब उन्ही का एक साथी दल बेल में आता है, कागज छीन लेता है, फाड़ देता है और सदन स्थगित हो जाता है, और 40 साल तक विषय लटका रहता है और वह आज उनके मार्गदर्शक हैं। जिन्होंने देश की महिलाओं के साथ अन्याय किया वह उनके मार्गदर्शक हैं।
हमने धरा 370 हटाने का संशोधन किया: प्रधानमंत्री ने आगे कहा हमने 370 का हटाने का संशोधन किया। हमने ऐसे कानून भी बनाए। जब देश का विभाजन हुआ महात्मा गांधी समेत देश के वरिष्ठ नेताओं ने सार्वजनिक रूप से कहा था, कि पड़ोस के जो हमारे देश हैं वहां जो माइनारटीज हैं वो जब भी संकट में आएगी उनकी चिंता यह देश करेगा गांधी जी का वचन था जो उनके नाम पर सत्ता पर चढ़ जाते थे उन्होंने तो पूरा नहीं किया हमने CAA ला करके उसको पूरा किया। वह कानून हमने लाया, हमने किया है और गर्व के साथ हम आज भी उसको ऑन कर रहे हैं मुंह नहीं छुपाते हैं। क्योंकि देश के संविधान की भावना के साथ मजबूती के साथ खड़े रहने का हमने काम ने किया है। हमने जो संविधान संशोधन किए हैं वो पुरानी गलतियों को ठीक करने के लिए किए है और हमने एक उज्जवल भविष्य का रास्ता मजबूत करने के लिए किए हैं और समय बताएगा समय की कसौटी पर हम खरे उतरेंगे या नहीं। क्योंकि सत्ता स्वार्थ के लिए किया गया पाप नहीं है। हमने देश हित में किया गया पुण्य है और इसलिए जो सवाल पूछते हैं।