लोकसभा
नई दिल्ली। अमृत काल में अंतरिक्ष के संदर्भ में जो परिकल्पना की गई है, उसमें 2035 तक एक ऑपरेशनल भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (बीएएस) और 2040 तक भारतीय क्रू चंद्र मिशन की स्थापना भी शामिल हैं। बीएएस विज्ञान, प्रौद्योगिकी, चिकित्सा, कृषि, अंतरिक्ष विनिर्माण क्षेत्र में बहु-विषयक माइक्रोग्रैविटी प्रयोग और अध्ययन करने वाली पहली राष्ट्रीय अंतरिक्ष प्रयोगशाला होगी। इसके अलावा बीएएस, वैश्विक और राष्ट्रीय सहयोग, चंद्रमा के बारे में जानकारी एकत्रित करने और उससे भी आगे के क्षेत्र में कार्य करने तथा देश की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में मदद के लिए मंच के रूप में भी कार्य करेगा।
यह जानकारी केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री, परमाणु ऊर्जा विभाग, अंतरिक्ष विभाग, कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय में राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने बुधवार को लोकसभा में एक लिखित उत्तर में दी।
इसरो ने भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन के लिए विभिन्न प्रौद्योगिकियों का विकास शुरू कर दिया है। इन प्रौद्योगिकियों को बीएएस के लिए पूर्ववर्ती मिशनों के ज़रिए प्रदर्शित किया जाएगा, जिसे हाल ही में गगनयान कार्यक्रम में संशोधन के हिस्से के रूप में सरकार द्वारा अनुमोदित किया गया है।
अंतरिक्ष विभाग, प्रमुख मिशनों की मंजूरी के साथ भारत के अंतरिक्ष विजन 2047 की ओर तेज़ी से बढ़ रहा है, इन मिशनों में 2028 तक प्रथम मॉड्यूल भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (बीएएस) की स्थापना, 2032 तक अगली पीढ़ी के उपग्रह प्रक्षेपण यान (एनजीएलवी) (पुर्न प्रयोग तथा कम लागत वाले प्रक्षेपण यान) का विकास, 2027 तक चंद्रयान-4, चंद्रमा पर सफलतापूर्वक उतरने के बाद पृथ्वी पर वापस आने के लिए प्रौद्योगिकियों का विकास और प्रदर्शन करना और चंद्रमा के नमूने भी एकत्र करना, 2028 तक वीनस ऑर्बिटर मिशन (वीओएम), शुक्र ग्रह की सतह और उपसतह, वायुमंडलीय प्रक्रियाओं और शुक्र के वायुमंडल पर सूर्य के प्रभाव का अध्ययन करना शामिल है।