- हिंदी ने हर दूसरी क्षेत्रीय भाषा को स्वीकार किया है, जो इसकी प्रासंगिकता की सबसे बड़ी वजह बन गई है
- हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हिंदी एक वैश्विक भाषा, जिसकी क्षमता उसे पहले से ही हासिल है
- दक्षिणी राज्यों में हिंदी के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले पांच वरिष्ठ हिंदी प्रचारकों को सम्मानित किया गया
नई दिल्ली। केंद्रीय पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्री श्री सर्बानंद सोनोवाल ने दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, मद्रास के 83वें दीक्षांत समारोह में भाग लिया और महात्मा गांधी दीक्षांत हॉल में दीक्षांत भाषण दिया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता मुख्य अतिथि दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, मद्रास के प्रेसिडेंट श्री वी मुरलीधरन ने की। इस अवसर पर प्रवीण और विशारद परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले लगभग 8000 छात्र उपस्थित थे। इस अवसर पर मद्रास के रैंक धारकों को सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम में दक्षिण भारत के सभी राज्यों से कार्यकारी समिति, अकादमिक परिषद और शासी निकाय के सदस्य भी शामिल हुए। इस अवसर पर दक्षिण भारत में हिंदी के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले पांच वरिष्ठ हिंदी प्रचारकों को सम्मानित किया गया। इसके अलावा, तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम की प्रत्येक दक्षिणी भाषा के चार-चार साहित्यकारों को भी सम्मानित किया गया, जो गांधी जी के एकीकरणवादी दृष्टिकोण का प्रतीक है। इस कार्यक्रम में अन्य सम्मानों के अलावा, शिक्षा परिषद, डीबीएचपी सभा के चेयरमैन श्री पी ओबैया ने एमए, एम.फिल, पीएचडी, बी.एड और पीजी डिप्लोमा के छात्रों को निष्ठा की शपथ दिलाई।
इस अवसर पर अपने संबोधन में केंद्रीय मंत्री सोनोवाल ने देश के एकीकरण में हिंदी की ऐतिहासिक भूमिका पर प्रकाश डाला, जिस पर गांधी जी हमेशा जोर देते थे। उन्होंने यह भी बताया कि हिंदी ने कभी भी अपने किसी भी क्षेत्रीय समकक्ष के प्रति शत्रुतापूर्ण व्यवहार नहीं किया है और उनमें से प्रत्येक को स्वीकार किया है। बल्कि, हिंदी ने अन्य क्षेत्रीय भाषाओं को समृद्ध ही किया है। श्री सोनोवाल ने यह भी कहा कि हमें भारतीयों के रूप में हिंदी को वैश्विक भाषा बनाने की दिशा में काम करना चाहिए, जिसके लिए उन्होंने युवाओं से सबसे सार्थक तरीके से योगदान करने का आह्वान किया।