हमारे इम्तिहां के बाद किसका इम्तिहां होगा – डॉ० अजहर खैराबादी

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जहांगीराबाद/बिसवां(सीतापुर) – उर्दू साहित्य के मशहूर शायर और लेखक ताबिश मेंहदी प्रतापगढ़ी की यादगार के रूप में स्थापित संस्था ताबिश लिटरेरी सोसायटी बिसवां के द्वारा मा० गुलरेज के आवास पर एक अदबी महफिल और मुशायरे का आयोजन किया गया जिसमें एक दर्जन से अधिक शायरों ने अपने कलाम पेश किये। इस मौके पर डॉ० सगीर आलम “अजमल बिसवानी” को उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए सम्मानित किया गया। कार्यक्रम के संयोजक रहबर प्रतापगढ़ी ने शायरों और अतिथियों को फूलों की माला पहनाकर स्वागत किया तथा अंगवस्त्र भेंटकर सम्मानित किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता गुलरेज बनारसी ने की।

साहित्यिक गोष्ठी को संबोधित करते हुए रहबर प्रतापगढ़ी ने कहा कि उर्दू हिन्दुस्तानी जबान है यहीं पैदा हुई और परवान चढ़ी। इसकी तरक्की में हिन्दुस्तान के सभी मजहब के लोगों ने योगदान दिया है।इसे किसी धर्म से जोड़ना सही नहीं है। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ सगीर आलम “अजमल बिसवानी” ने कहा कि उर्दू सिर्फ एक जबान ही नहीं है बल्कि एक तहजीब है,जिसे हर कोई पसंद करता है। डॉ० अजहर खैराबादी ने अपने सम्बोधन में कहा कि उर्दू जबान और अदब की जंग-ए -आजादी से लेकर मुल्क की तरक्की और खुशहाली में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका रही है। कारी आजम जहांगीराबादी ने उर्दू जबान की मिठास और दिलकशी पर चर्चा की।
इस मौके पर शायरों ने अपने कलाम पेश किये जिसमें चुनिंदा शेर इस प्रकार हैं – डॉ०अजमल बिसवानी ने अपना कलाम पेश करते हुए कहा कि –

नहीं मरने का अपने गम अगर गम है तो ये गम है।
हमारे इम्तिहां के बाद किसका इम्तिहां होगा ।।
डॉ० अजहर खैराबादी ने जीवन में आने वाली चुनौतियों को कुछ इस तरह बयान किया कि-
जितना मुझे तपाया गया गम की आग में।
सोने की तरह और निखरता चला गया।।
कारी आजम जहांगीराबादी ने एकता के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि –
लाएगा उन्हें मरकज-ए–वाहिद पे भला कौन।
जो एक न होने की कसम खाये हुए हैं।।
रहबर प्रतापगढ़ी ने अपने कलाम में आपसी भाईचारे पर जोर देते हुए कहा कि-

वह क्या डरेंगे गर्दिशे लैलो नहार से।
रहते हैं जो जहां में सलीके से प्यार से।।
अनवर बिसवानी ने आज के रहनुमाओं पर व्यंग करते हुए कहा कि-
हर एक सिमत से घेरे हुए हैं खार हमें।
लहू भी देके मयस्सर नहीं बहार हमें ।।
इस मौके पर हाफिज मसूद महमूदाबादी,डा० कफील बिसवानी, जुबेर वारिस ने भी अपने कलाम पेश किये। महफिल में असलम, डा० अहमद अली अंसारी, डा०रफीक अंसारी, मंसूर आलम, खिजिर खान, महद खान, शफकत अली खान तथा हसीर खान आदि बड़ी संख्या में श्रोता मौजूद थे।

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