चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में चरक और सुश्रुत का योगदान उल्लेखनीय : राष्ट्रपति

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गोपबंधु आयुर्वेद महाविद्यालय, पुरी की 75वीं वर्षगांठ

नई दिल्ली। भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने आज (4 दिसंबर, 2024) ओडिशा के पुरी में गोपबंधु आयुर्वेद महाविद्यालय की 75वीं वर्षगांठ समारोह में शिरकत की। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में चरक और सुश्रुत का योगदान उल्लेखनीय है।

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इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि, मौजूदा वक्त विज्ञान और प्रौद्योगिकी का वक्त है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग, क्वांटम कंप्यूटिंग और 3-डी प्रिंटिंग जैसी तकनीकें अध्ययन और विकास दोनों में मदद कर रही हैं। हमें वर्तमान की ज़रुरतों को पहचान कर भविष्य का खाका तैयार करना होगा। लेकिन, अपने अतीत को जाने बिना हम न तो वर्तमान को समझ सकते हैं और न ही भविष्य की रणनीति तय कर सकते हैं। हमें अपने गौरवशाली अतीत के बारे में जानकारी होनी चाहिए। भारत में भौतिकी, रसायन विज्ञान, खगोल विज्ञान, ज्योतिष, चिकित्सा, गणित और वास्तुकला में क्षेत्र में समृद्ध परंपराएं हैं। आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त, वराहमिहिर और भास्कराचार्य जैसे वैज्ञानिकों ने विज्ञान के क्षेत्र को समृद्ध किया है। इसी प्रकार चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में चरक और सुश्रुत का योगदान उल्लेखनीय है।

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राष्ट्रपति ने कहा कि पारंपरिक भारतीय चिकित्सा प्रणालियाँ, रोकथाम और इलाज को समान महत्व देती हैं। उन्होंने विश्वास जताया कि गोपबंधु आयुर्वेद महाविद्यालय के छात्र डॉक्टर के रूप में सेवा देने के साथ-साथ आयुर्वेद के तमाम अछूते पहलुओं पर भी शोध करेंगे। उन्होंने कहा कि शोध से इस प्राचीन चिकित्सा प्रणाली की प्रामाणिकता स्थापित होगी और दुनिया भर में इसकी मान्यता बढ़ेगी।

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राष्ट्रपति ने कहा कि आदिवासी लोग प्राचीन काल से जड़ी-बूटियों और उनके औषधीय लाभों के बारे में जानते हैं। लेकिन, यह पारंपरिक ज्ञान अब धीरे-धीरे लुप्त होता जा रहा है। उन्होंने उम्मीद जताई कि इस कॉलेज के छात्र, उपचार की इस प्रणाली के वैज्ञानिक आधार का पता लगाएंगे। उन्होंने कहा कि ऐसा करके वे उस पारंपरिक व्यवस्था को विलुप्त होने से बचा पाएंगे।

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