आलू, आम एवं शाकभाजी फसलों को रोगों से बचायें किसान भाई

अवधनामा

श्रावस्ती। जिला उद्यान अधिकारी अजय कुमार ने बताया है कि प्रदेश में आलू, आम, केला एवं शाकभाजी फसलों की गुणवत्तायुक्त उत्पादन हेतु सम-सामयिक महत्व के रोगों/व्याधियों को समय से नियंत्रण किया जाना आवश्यक है। मौसम विभाग द्वारा प्रदेश में तापमान में गिरावट, कोहरा, की सम्भावना व्यक्त की गयी है। ऐसी स्थिति में औद्यानिक फसलों को प्रतिकूल मौसम से बचाना  जरूरी है।
उन्होने बताया कि प्रदेश में वर्तमान वित्तीय वर्ष में लगभग 6 लाख हेक्टेयर आलू आच्छादन सम्भावित है। वातावरण में तापमान में गिरावट एवं बूंदा-बांदी की स्थिति में आलू की फसल पिछेती झुलसा रोग के प्रति अत्यन्त संवेदनशील है। प्रतिकूल मौसल विशेषकर बदलीयुक्त बूंदा-बांदी एवं नम वातावरण में झुलसा रोग का प्रकोप बहुत तेजी से फैलता है तथा फसल को भारी क्षति पहुँचती है। पिछेती झुलसा रोग के प्रकोप से पत्तियों सिरे से झुलसना प्रारम्भ होती है, जो तीव्रगति से फैलती है। पत्तियों पर भूरे काले रंग के जलीय धब्बे बनते हैं तथा पत्तियों के निचली सतह पर रूई की तरह फफूँद दिखाई देती है।

बदलीयुक्त 80 प्रतिशत से अधिक आई वातावरण एवं 10-20 डिग्री सेन्टीग्रेड तापक्रम पर इस रोग का प्रकोप बहुत तेजी से होता है और 2 से 4 दिनों के अन्दर ही सम्पूर्ण फसल नष्ट हो जाती है। आलू की फसल को अगेती व पिछेती झुलसा रोग से बचाने के लिए साफ/कगुआ (कार्बेडाजिम 12प्रतिशत$मैकोजेब 63 प्रतिशत डब्ल्यू.पी.) 2.0 से 2.5 कि0ग्रा0 अथवा प्रोपिनेब 63 प्रतिशत डब्ल्यू.पी, 2 से 2.5 कि०ग्रा० प्रति हेक्टेयर की दर से 800 से 1000 ली० पानी में घोल बनाकर छिड़काव किया जाये तथा माहू कीट के प्रकोप की स्थिति में नियंत्रण के लिए दूसरे छिड़काव में फफूंदीनाशक के साथ कीट नाशक जैसे इमिडाक्लोप्रिड 17.1 प्रतिशत एस.एल. 1.0 ली0, 800 से 1000 ली० पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। जिन खेतो में पिछेती झुलसा रोग का प्रकोप हो गया हो तो ऐसी स्थिति में रोकथाम के लिये अन्तःग्राही (सिस्टेमिक) फफूंद नाशक मेटालेक्जिल युक्त रसायन 2.5 कि0ग्रा0 अथवा साईमोक्जेनिल फफूंदनाशक युक्त रसायन 2.0 कि0ग्रा0 800 से 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करने की सलाह दी जाती है।
प्रदेश में आम की अच्छी उत्पादकता सुनिश्चित करने हेतु गुजिया कीट (मैंगो मिलीबग) से बचाया जाना अत्यन्त आवश्यक है। इस कीट से आम की फसल को को काफी व क्षति पहुँचती है। इसके शिशु कीट (निम्फ) को पेड़ों पर चढ़ने से रोकने के लिए माह दिसम्बर में आम के पेड़ के मुख्य तने पर भूमि से 30-50 से0मी0 की ऊँचाई पर 400 गेज की पालीथीन शीट की 25 सेमी० चौड़ी पट्टी को तने के बारों ओर लपेट कर ऊपर व नीचे सुतली से बांध कर पॉलीथीन शीट के ऊपरी व निचली हिस्से पर ग्रीस लगा देना चाहिए। कीट के नियन्त्रण हेतु जनवरी के प्रथम सप्ताह से 15-15 दिन के अन्तर पर दो बार क्लोरीपाइरीफॉस (1.5 प्रतिशत) चूर्ण 250 ग्राम प्रति पेड़ के हिसाब से तने के चारों ओर बुरकाव करना चाहिए। अधिक प्रकोप की दशा में यदि कीट पेड़ों पर चढ़ जाते हैं तो ऐसी स्थिति में इमिडाक्लोप्रिड 17.1 प्रतिशत एस.एल., 2.0 मि0ली0 दवा को प्रति ली० पानी में घोलकर स्टीकर/सरफैक्टेन्ट के साथ मिलाकर आवश्यकतानुसार छिड़काव करें।
प्रदेश में तराई क्षेत्रों में केला की खेती व्यवसायिक स्तर पर तेजी से की जा रही है। वातावरण में पाला पड़ने के कारण केले की फसल को काफी नुकसान पहुँचता है। इसी प्रकार अन्य सब्जियाँ यथा-मिर्च, टमाटर, मटर आदि फसलों पर भी कम तापमान एवं कोहरा, पाला एवं बूंदा-बांदी से भारी नुकसान पहुँचता है। ऐसी स्थिति में किसान भाइयों को सलाह दी जाती है कि फसल को पाले से बचाएँ तथा आवश्यकतानुसार फसलों में नमी बनाये रखने हेतु समय-समय पर सिंचाई की जाय। पौधशाला के छोटे पौधों को पाले, कोहरे से बचाये जाने हेतु उद्यानों को पॉलीथीन अथवा टाट से ढंकना चाहिए।
उन्होने यह भी बताया कि कीटनाशक के प्रयोग में विशेष सावधानियाँ बरतनी चाहिए। जैसे-कीटनाशक के डिब्बों को बच्चों व जानवरों की पहुँच से दूर रखना चाहिए। कीटनाशक का छिड़काव करते समय हाथों में दस्ताने, मुँह को मास्क व आँखों को चश्मा पहनकर ढक लेना चाहिए, जिससे कीटनाशी त्वचा व आँखों में न जाय। कीटनाशक का छिड़काव शाम के समय जब हवा का वेग अधिक न हो तब करना चाहिए अथवा हवा चलने की विपरीत दिशा में खड़े होकर करना चाहिए। कीटनाशक के खाली पाउच डिब्बों को मिट्टी में दबा देना चाहिए।

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