रुद्रशिव मिश्र
चुनाव दर चुनाव विपक्ष का ईवीएम के प्रति रवैया सोचनीय होता जा रहा है। खासतौर से तब जब उसकी भी कई राज्यों में सरकारें ईवीएम की बदौलत ही बनी हैं। यह रवैया कहां तक उचित है कि जब आपकी जीत हो जाए तो ईवीएम अच्छी है और जब आप हार जाएं तो उसको लेकर हायतौबा मचाएं। इस सन्दर्भ में गत दिनों सुप्रीम कोर्ट ने भी ऐसे लोगों को फटकार लगाई थी।
देश में सबसे पहले ईवीएम के माध्यम से केरल प्रदेश मेें 1982 में परूर विधानसभा सीट के 50 मतदान केन्द्रों पर वोट डाले गये थे। लेकिन तब तक इस बाबत कोई नियम कानून नहीं था इसलिये उच्चतम न्यायालय ने इस चुनाव को रद्द कर दिया था। इसके बाद तत्कालीन सरकार ने 1989 में ईवीएम से चुनाव कराने के लिये लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में संशोधन किया। लेकिन इसके लिए अधिसूचना जारी होने में तीन साल लग गये। 1992 में विधि और न्याय मंत्रालय ने इस बाबत अधिसूचना जारी कर दी।
अधिसूचना जारी होने के बाद भी इलेक्टानिक वोटिंग मशीनों का प्रयोग राजस्थान, दिल्ली और मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनावों में वर्ष 1998 में हुआ। इसके बाद साल 1999 में हुए लोकसभा चुनावों में भी 45 सीटों पर इन मशीनों के माध्यम से इलेक्शन कराया गया था। इसके साथ ही ईवीएम का चुनावों में प्रयोग का सिलसिला धीरे-धीरे बढ़ना शुरू हुआ। 2002 में तमिलनाडु, केरल, पश्चिम बंगाल और पुडुचेरी की सभी विधानसभा सीटों पर इलेक्टानिक वोटिंग मशीनों से मतदान कराया गया। 2001 के बाद तीन लोकसभा और 110 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर ईवीएम का इस्तेमाल किया गया।
साल 2009 में भारतीय जनता पाटी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने इन मशीनों पर सवाल खड़े किये थे। तत्कालीन जनता पाटी के अध्यक्ष सुब्रह्मण्यम स्वामी तो कोर्ट चले गये थे। यह सिलसला लगातार चल रहा है। साल 2017 में पांच विधानसभा चुनावों के बाद 13 राजनीतिक दल चुनाव आयोग गए और इन मशीनों पर प्रश्नचिह्न खड़ा किया।
EVM के फायदे : सटीकता: EVM में वोटों की गिनती में कोई गलती होने की संभावना कम होती है, क्योंकि यह डिजिटल प्रणाली है। तेज परिणाम: पारंपरिक मतपत्रों की तुलना में, EVM के माध्यम से परिणाम जल्दी आ जाते हैं। सुरक्षा: EVM में बहुत सारी सुरक्षा विशेषताएँ होती हैं, जैसे कि चुनाव के बाद वोटों की जानकारी को किसी बाहरी व्यक्ति से बदलने का कोई तरीका नहीं होता है। कम खर्च: EVM के इस्तेमाल से चुनावों में खर्च कम होता है, क्योंकि कागज के मतपत्रों की आवश्यकता नहीं होती
अभी हाल में महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा के चुनाव हुए हैं। इनमें झारखंड में इंडिया गठबंधन और महाराष्ट्र में भाजपा की अगुवाई वाला महायुति गठबंधन जीता है। झारखंड के परिणामों पर कोई चर्चा नहीं हो रही क्योंकि वहां परिणाम विपक्ष के अनुकूल है। लेकिन महाराष्ट्र में इसलिये हायतौबा विपक्ष मचा रहा है क्योंकि उसे वहां बुरी हार का सामना करना पड़ा है। इससे पहले हरियाणा के चुनाव परिणामों पर भी हल्ला मच चुका है।
तो अब विपक्ष को समझदार और जिम्मेदार विपक्ष की भूमिका निभानी चाहिए क्योंकि आम जनता भी उनकी इन चुनिंदा हार जीत की चर्चा करना समझ चुकी है। कांग्रेस समेत विभिन्न विरोधी दल बैलेट से चुनाव चाहते हैं। बैलेट से चुनाव का इतिहास कौन भूल सकता है जब बूथ के बूथ छाप लिये जाते थे। दबंग लोग आम लोगों को वोट डालने नहीं देते थे। ऐसे में उस युग की पुनरागमन देश और यहां की अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा नहीं होगा। हां चुनाव आयोग को विपक्ष के उठाये प्रश्नों के और संतोषजनक जवाब देने चाहिए।