सीतापुर – कृषि विज्ञान केंद्र, कटिया, सीतापुर में एकीकृत बागवानी विकास योजना के अंतर्गत दो दिवसीय कृषक प्रशिक्षण कार्यक्रम का सफल आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का उद्घाटन कृषि विज्ञान केंद्र के अध्यक्ष, जिला उद्यान अधिकारी, जिला उद्यान निरीक्षक, केंद्र के वैज्ञानिकों और क्षेत्र के प्रगतिशील किसानों की उपस्थिति में किया गया।
कार्यक्रम के तकनीकी सत्र में कृषि विज्ञान केंद्र के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. दयाशंकर श्रीवास्तव ने स्वागत उद्बोधन देते हुए केंद्र की प्रमुख तकनीकों और नवीन कृषि पद्धतियों पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि उद्यानिकी फसलें किसानों की आय बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। एकीकृत कीट प्रबंधन पर चर्चा करते हुए उन्होंने सोलर लाइट ट्रैप, पीला चिपचिपा पास, फूट फ्लाई ट्रैप सहित अन्य जैविक विधियों के उपयोग को बढ़ावा देने की बात कही, जिससे कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग को कम कर खेती की लागत घटाई जा सकती है।
जिला उद्यान अधिकारी श्रीमती राजश्री ने अपने विस्तृत उद्बोधन में सरकार द्वारा संचालित योजनाओं की जानकारी दी, जिनमें एकीकृत बागवानी मिशन, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, हर्बल गार्डन की स्थापना, राष्ट्रीय आयुष मिशन, फल पट्टी विकास योजना और उत्तर प्रदेश खाद्य प्रसंस्करण उद्योग नीति प्रमुख रूप से शामिल हैं। उन्होंने किसानों को बागवानी के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के लिए विभिन्न योजनाओं का लाभ उठाने हेतु प्रेरित किया। साथ ही, उन्होंने आधुनिक तकनीकों के प्रयोग से उत्पादन बढ़ाने की संभावनाओं पर भी चर्चा की।
जिला उद्यान निरीक्षक श्री राजीव गुप्ता ने प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्योग उन्नयन योजना (पी0एम0-एफ0एम0ई0) के तहत किसानों को दी जाने वाली अनुदान एवं सुविधाओं की जानकारी दी, जिससे किसान अपने उत्पादों का प्रसंस्करण कर अधिक लाभ अर्जित कर सकते हैं। उन्होंने स्थानीय स्तर पर खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना के महत्व को भी रेखांकित किया।
प्रशिक्षण के दूसरे दिन प्रगतिशील कृषक एवं उद्यमी मोहम्मद फहद फारुकी ने आम की बागवानी प्रबंधन पर विशेष सत्र लिया। उन्होंने आम के उत्पादन में आधुनिक तकनीकों, उर्वरक प्रबंधन और रोग नियंत्रण के प्रभावी उपायों पर चर्चा की।
मृदा वैज्ञानिक श्री सचिन प्रताप तोमर ने फल एवं फूल वाली फसलों के पोषक तत्व प्रबंधन पर जानकारी दी। उन्होंने कार्बनिक, अकार्बनिक एवं जैविक उर्वरकों के संतुलित उपयोग की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने किसानों को मृदा परीक्षण के आधार पर उर्वरकों के समुचित प्रयोग की सलाह दी, जिससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहे और उत्पादन में वृद्धि हो।
गृह वैज्ञानिक डॉ. रीमा ने फल एवं सब्जियों के प्रसंस्करण पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि इनका उपयोग अचार, चटनी, जैम, जेली और पाउडर जैसे उत्पादों के निर्माण में किया जा सकता है, जिससे किसानों को अतिरिक्त आर्थिक लाभ प्राप्त हो सकता है।
इस अवसर पर कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. आनंद सिंह, शैलेन्द्र सिंह, डॉ. शिशिरकांत सिंह एवं डॉ. योगेंद्र प्रताप सिंह ने विभिन्न कृषि विषयों पर किसानों के प्रश्नों के उत्तर देकर उनका मार्गदर्शन किया।
प्रगतिशील कृषक अमनदीप सिंह (हरगांव, सीतापुर) ने केला उत्पादन पर विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने बताया कि अधिक उत्पादन के लिए प्रजाति का चयन, मिट्टी की उपयुक्तता, संतुलित उर्वरक प्रबंधन और सिंचाई व्यवस्था महत्वपूर्ण होती है। चूंकि केला एक दीर्घकालिक फसल है, इसलिए खरपतवार प्रबंधन पर भी विशेष ध्यान देना आवश्यक है।
नवीन मोहन राजवंशी (पिछौली, हरगांव) ने स्ट्रॉबेरी की खेती पर अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया कि स्ट्रॉबेरी एक उच्च मूल्य वाली नकदी फसल है, जिसे ठंडी जलवायु में उगाया जाता है। इसका उपयोग ताजे फलों, जैम-जेली, आइसक्रीम, केक और पाउडर के रूप में किया जाता है, जिससे किसानों को अच्छा मुनाफा प्राप्त हो सकता है।
द्वितीय दिवस के समापन पर कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा अंगीकृत प्राकृतिक खेती ग्राम कमुवा का कृषकों को भ्रमण कराया गया, जहां किसानों ने जैविक खेती, कीट प्रबंधन और प्राकृतिक संसाधनों के उचित उपयोग की तकनीकों को प्रत्यक्ष रूप से समझा।
इस दो दिवसीय प्रशिक्षण में कुल 32 किसानों ने भाग लिया और अपनी जिज्ञासाओं के साथ-साथ अनुभव भी साझा किए। यह दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम न केवल किसानों के लिए ज्ञानवर्धक रहा, बल्कि उन्हें आधुनिक कृषि तकनीकों को अपनाने और सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए भी प्रेरित किया।