लोकसभा में केंद्रीय विद्युत मंत्री ने दी जानकारी
नई दिल्ली। केंद्रीय विद्युत मंत्री श्री मनोहर लाल ने लोकसभा में आज एक प्रश्न के उत्तर में बताया कि केन्द्र सरकार ने अक्टूबर 2017 में प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना (सौभाग्य) आरंभ की थी जिसका उद्देश्य देश के ग्रामीण क्षेत्रों में सभी गैर-विद्युतीकृत घरों और शहरी क्षेत्रों के सभी इच्छुक निर्धन परिवारों को बिजली कनेक्शन प्रदान कराना था। राज्यों से प्राप्त जानकारी के अनुसार सौभाग्य योजना के आरंभ होने के बाद से 31 मार्च 2022 तक लगभग 2 करोड़ 86 लाख घरों का विद्युतीकरण किया गया है।
उन्होंने बताया महाराष्ट्र में कुल 5,89,242 घरों का विद्युतीकरण किया गया जिसमें ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में ग्रिड के माध्यम से क्रमशः 5,42,914 और 15,790 घर तथा ग्रामीण क्षेत्रों में ऑफ-ग्रिड मोड माध्यम से 30,538 घर शामिल हैं। सौभाग्य योजना के तहत सभी स्वीकृत कार्य पूरे हो गए हैं और यह योजना 31 मार्च 2022 तक सम्पन्न हो गई। इसके अलावा पुनर्गठित विद्युत वितरण क्षेत्र योजना (आरडीएसएस) के तहत पीएम-जनमन (प्रधानमंत्री जनजातीय आदिवासी न्याय महा अभियान) और डीए-जेजीयूए (धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान) के तहत महाराष्ट्र में 9,036 घरों के विद्युतीकरण को मंजूरी दी गई है।
जुलाई 2021 में आरडीएसएस योजना शुरू की थी : केन्द्र सरकार ने जुलाई 2021 में आरडीएसएस योजना शुरू की थी। इसका उद्देश्य वितरण उपयोगिताओं यानी डिस्कॉम/विद्युत विभागों (पीडी) को वितरण क्षेत्र की परिचालन क्षमता और वित्तीय स्थिरता में सुधार में सहायता करना है ताकि बिजली की गुणवत्तापूर्ण और विश्वसनीय आपूर्ति हो सके। इस योजना में देश भर में तकनीकी और वाणिज्यिक (एटीएंडसी) नुकसान 12 से 15 प्रतिशत तक कम करने और आपूर्ति की औसत लागत और औसत प्राप्त राजस्व (एसीएस-एआरआर गैप) के अंतर को 2024-25 तक शून्य करने का लक्ष्य है।
आरडीएसएस का कुल परिव्यय 3,03,758 करोड़ रुपये है, जिसमें 97,631 करोड़ रुपये का सकल बजटीय समर्थन (जीबीएस) शामिल है। योजना की अवधि 5 वर्ष (वित्त वर्ष 2021-22 से वित्त वर्ष 2025-26) तक है। 30 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के 48 डिस्कॉम आरडीएसएस में शामिल हैं।
किसी उपयोगिता में एटीएंडसी नुकसान और एसीएस-एआरआर का अंतर प्रदर्शन के मुख्य वित्तीय और परिचालन संकेतक हैं। नुकसान सीधे नकदी प्रवाह को प्रभावित करता है जिससे उपभोक्ताओं को महंगी बिजली की आपूर्ति करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। एटीएंडसी नुकसान कम किए जाने और एसीएस-एआरआर अंतर में कमी से वित्तीय व्यवस्था में सुधार से वितरण कंपनियों को अपनी व्यवस्था बेहतर ढंग से परिचालित करने और आवश्यकता अनुसार बिजली खरीदने में सक्षमता मिलती है जिससे उपभोक्ताओं को लाभ होता है।
इन नुकसानों को दूर करने के लिए योजना के तहत अनिवार्य पूर्व-योग्यता मानदंड निर्धारित किए गए हैं जिसमें वार्षिक और तिमाही खातों की लेखा जांच और समय पर प्रकाशन, राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा सब्सिडी और सरकारी विभागों के बकाए को समय पर जारी करना, विनियामक व्यय रोकना, सरकारी प्रतिष्ठानों में प्रीपेड मीटरिंग, विद्युत उत्पादन कंपनियों के बकाए का समय पर भुगतान और विद्युत दरों का समय पर प्रकाशन शामिल है। इसमें प्रमुख वित्तीय और परिचालन मानदंडों के अनुसार उपयोगिता प्रदर्शन के आधार पर मूल्यांकन शामिल है।
इसके अलावा नुकसान में कमी और स्मार्ट मीटरिंग कार्यों के लिए आरडीएसएस के तहत 2 लाख 77 हजार करोड़ रुपये की परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है। स्वीकृत बुनियादी ढांचा का काम कार्यान्वयन के विभिन्न चरणों में हैं और अब तक इसमें लगभग 17 प्रतिशत की प्रगति हुई है।
विद्युत वितरण क्षेत्र में सुधार के लिए भी कई पहल : विद्युत वितरण क्षेत्र में सुधार के लिए भी कई पहल किए गए हैं जिनमें विद्युत (विलंब भुगतान अधिभार और संबंधित मामले) नियम 2022, ईंधन और विद्युत खरीद लागत समायोजन (एफपीपीसीए) तथा लागत प्रदर्शित करने वाली दरों के कार्यान्वयन के नियम शामिल हैं। विद्युत आपूर्ति के लिए विवेकपूर्ण लागत अनुमति, विद्युत क्षेत्र सुधारों से जुड़े राज्यों को जीएसडीपी का अतिरिक्त 0.5 प्रतिशत देना, उपयोगिताओं के आधार पर पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन (पीएफसी) लिमिटेड और आरईसी लिमिटेड द्वारा राशि देने के अतिरिक्त विवेकपूर्ण मानदंड उपाय किए गए हैं।
एसीएस-एआरआर में अंतर भी 0.84 रुपये/किलोवाट घंटा से 0.45 रह गया : इन सुधारों से राष्ट्रीय स्तर पर वितरण उपयोगिताओं की एटीएंडसी हानि वित्त वर्ष 2013 में 25.5 प्रतिशत से घटकर वित्त वर्ष 2023 में 15.37 प्रतिशत पर आ गई । एसीएस-एआरआर में अंतर भी वित्त वर्ष 2013 में 0.84 रुपये/किलोवाट घंटा से कम होकर वित्त वर्ष 2023 में 0.45 रुपये/किलोवाट घंटा रह गया है। इसके अतिरिक्त ग्रामीण क्षेत्रों के लिए विद्युत आपूर्ति के घंटे वित्त वर्ष 2014 के 12 घंटे 5 मिनट से बढ़कर वित्त वर्ष 2024 में 21 घंटे 9 मिनट हो गए हैं। इसी तरह, शहरी क्षेत्रों के लिए यह वित्त वर्ष 2014 में 22 घंटे एक मिनट से बढ़कर वित्त वर्ष 2024 में 23 घंटे चार मिनट हो गये हैं।