सतना- मध्यप्रदेश शासन संस्कृति विभाग की ओर से 20 से 26 अक्टूबर 2024 तक श्रीरामकथा के विविध प्रसंगों की लीला प्रस्तुतियों पर एकाग्र सात दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय श्रीरामलीला उत्सव का आयोजन श्रीराघव प्रयाग घाट, नयागाँव चित्रकूट सतना में किया जा रहा है।
समारोह में लीला मण्डल रंगरेज कला संस्थान, उज्जैन के कलाकार प्रतिदिन शाम-7 बजे से श्रीरामकथा के प्रसंगों की प्रस्तुतियां दे रहे हैं। इस अवसर पर “श्रीरामराजा सरकार” श्रीराम के छत्तीस गुणों का चित्र कथन प्रदर्शनी का आयोजन भी किया जा रहा है। समारोह के पांचवें दिन गुरुवार को भरत मिलाप, सीता हरण, जटायु मरण, शबरी प्रसंग का मंचन किया गया। इस मौके पर श्रीरामकथा के चरितों पर आधारित व्याख्यानमाला में जबलपुर की पूर्व महापौर डॉ. स्वाती गोडबोले ने उर्मिला चरित्र पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि देवी उर्मिला अपना पूरा जीवन, लक्ष्मणजी की छाया के रूप में जीती हैं। जैसा त्यागा माता सीता ने किया, उसी तरह का महान त्याग देवी उर्मिला का भी है। सीताजी जहां शांत स्वभाव की थीं, तो उर्मिला चंचल स्वभाव की होते हुए अत्यंत संयमी थीं। उन्हें मैथली, जानकी जैसे संबोधन मिलने चाहिए थे, लेकिन ये सभी संबोधन माता सीता को मिले। 4 बहनों में अत्यंत प्रेमभाव था, इस कारण देवी उर्मिला को कभी माता सीता या अन्य बहनों से ईर्ष्या नहीं हुई। दैवीय गुणों के साथ जन्मीं देवी उर्मिला शेषनाग की पत्नी नागलक्ष्मी थीं। इसलिए उनका माता लक्ष्मी का अवतार माता सीता के प्रति पूरा समर्पण था। अपना अधिकार न जमाते हुए, माता सीता को अपना अभिन्न अंग माना।
श्रीरामलीला के पहले प्रसंग में दिखाया गया कि श्रीराम को भाई भरत की चिंता सता रही होती है, तभी उन्हें समाचार मिलता है कि भरत और शत्रुघ्न अपनी चतुरंगिणी सेना के साथ वन में आ रहे हैं। यह समाचार सुनते ही श्रीराम खुशी जताते हुए ये समाचार माता सीता और लक्ष्मण को सुनाते हैं। वे सोच में पड़ जाते हैं कि कहीं भरत राजगद्दी तो सौंपने नहीं आ रहा है। लक्ष्मण कहते हैं, भरत और शत्रुघ्न अपनी चतुरंगिणी सेना के साथ वन में क्यों आ रहे हैं, उनके व्यवहार में खोट लगती है। निश्चित ही भरत के मन में ये विचार होगा कि बड़े भ्राता राम 14 वर्ष बाद लौटकर अयोध्या आएंगे, इसलिए उन्हें वन में ही समाप्त कर देंगे। आखिर वो माता कैकेयी के पुत्र हैं, लेकिन इसमें भरत का कोई दोष नहीं है। मैं भरत की सेना को युद्ध के मैदान में समाप्त कर दूंगा। श्रीराम कहते हैं, भरत जैसा भाई विश्व में कोई नहीं। अहंकार किसी को भी आ सकता है, लेकिन सिर्फ उन्हें ही अहंकार नहीं आ सकता जिसे संतों का संग मिला हो। भरत तो स्वयं ही संत है।
अगले दृश्य में दिखाया गया कि भरत वन में आकर कहते हैं, मैं वन में जाकर भैया राम के छिपकर दर्शन करूंगा, क्योंकि मैं कैसे उनका सामना कर पाऊंगा। मैं उनके पवित्र आश्रम में पैर नहीं रखूंगा, कैकेयी पुत्र के कदमों से ये आश्रम अपवित्र हो जाएगा। राम-भरत के मिलने पर वे बताते हैं, कि हमारे साथ माताएं, गुरुदेव और अवध के लोग भी आए हैं। प्रभु श्रीराम अयोध्या लौटने से इंकार कर देते हैं तो भरत उनके खड़ाऊ लेकर राज्य शासन चलाने के लिए अयोध्या लौट जाते हैं। राम-भरत के इस दृश्य को देखकर चित्रकूट के पत्थर भी पिघल जाते हैं। अगले दृश्य में प्रभु श्रीराम लक्ष्मण से कहते हैं, दंडकारण्य में रावण की बहन सूर्पणखा का मनमाना शासन है। एक दिन सूर्पणखा वन में प्रभु श्रीराम को देख उनके समक्ष शादी का प्रस्ताव रखती है, श्रीराम उन्हें लक्ष्मण के पास भेज देते हैं। लक्ष्मण भी विवाह से इंकार कर देते हैं। सूर्पणखा माता सीता पर प्रहार करने के लिए आगे बढ़ती है, तभी लक्ष्मण उनके नाक काट देते हैं। अगले प्रसंग में दिखाया गया कि बहन का अपमान का पता जब रावण को लगता है तो वह माता सीता का हरण कर लंका ले जाता है। उन्हें खोजते हुए श्रीराम और लक्ष्मण माता शबरी के पास पहुंचते हैं, वहां माता शबरी उन्हें प्रेम से झुठे बेर खिलाते हुए सुग्रीव से मिलने ऋष्यमूक पर्वत जाने की सलाह देती हैं। उत्सव के समापन दिवस 26 अक्टूबर, 2024 को सेतुबंध, रामेश्वरम स्थापना, रावण-अंगद संवाद, कुंभकरण, मेघनाथ एवं रावण मरण, श्री राम राज्याभिषेक प्रसंगों को मंचित किए जायेंगे।