स्कूलों में पेरेंट्स मीटिंग्स के साथ साथ ग्रैंड पेरेंट्स मीटिंग्स और फॅमिली मीटिंग्स भी होनी चाहिए। ताकि वर्तमान परिवेश में छोटे बच्चों को पूरे परिवार से कनेक्ट होने का अवसर मिल सके। मेरा मानना है की बच्चों में शुरूआती १२ वर्ष की अवस्था तक संस्कार डेवलप किये जा सकते हैं। जिसके लिए वर्तमान समय की एकाकी परिवार व्यवस्था अपर्याप्त है। सिर्फ माता पिता मिलकर आज की वर्तमान व्यवस्था में बच्चों की ठीक प्रकार से परवरिश नहीं दे पाते हैं। क्यूंकि वर्तमान समय में व्यस्तताएं और समस्याएं बहुत बढ़ गयी हैं। और परिवार में खाइयां भी बढ़ती जा रही हैं। तो इस प्रकार की मीटिंग्स और अन्य छोटे छोटे उपक्रमों से हम सब इन खाइयों को पाट सकते है और अच्छे समाज का निर्माण कर सकते हैं । यह बातें अभिभावक दिवस के अवसर पर विशेष वार्ता के दौरान आईएमए के पूर्व प्रेजिडेंट एवं पीजीआई लखनऊ के निकट स्थित पीके पैथोलॉजी के संचालक डॉ पीके गुप्ता ने कही। डॉ गुप्ता ने कहा की आजकल चिंतन और मननशील युवाओं की कमी होती जा रही है। क्यूंकि माता पिता चाह कर भी बच्चों को पर्याप्त समय नहीं दे पाते हैं। ऐसे में एकाकी परिवार व्यवस्था से परिवार व्यवस्था की और बढ़ना लाभदायक हो सकता है। सभी लोग एकसाथ न रहे तो भी परिवार का जुड़ाव अपने आप छोटे बच्चो में एक प्रकार का संस्कार डेवलप करता है। दुखद बात है की वर्तमान में बच्चे अभिभावक का मतलब सिर्फ माता पिता तक ही समझते हैं। जब स्कूलों में ग्रैंड पेरेंट्स और फॅमिली मेंबर्स की मीटिंग का आयोजन होगा तो निश्चित ही बच्चे अन्य लोगो से कनेक्ट होंगे साथ ही फॅमिली मेंबर्स भी बच्चो से कनेक्ट होंगे।
पारिवारिक मेंबर्स की दूरी के कारण भी मोबाइल गेम में तेजी
डॉ गुप्ता ने कहा की पहले दादा दादी बच्चों को आध्यात्मिक कहानियां और गीत आदि सुनते थे जिस कारण उनमे संस्कार डेवलप होता था। परन्तु अब एकाकी परिवार व्यवस्था में बच्चे अपना समय मोबाइल गेम और मोबाइल के खेल कार्टून में बिता रहे हैं। जिसके दुष्परिणाम लगातार सामने आ रहे हैं। आजकल के बच्चों का पूरा समय मोबाइल पर ही बीत जाता है। चिंतन और मनन शक्ति क्षीण होती जा रही है। बच्चे हिंसक होते जा रहे हैं। यह बहुत खतरनाक स्थित है।
ताकि पूर्ण विकसित नौजवान से अच्छे समाज का निर्माण हो
डॉ पीके गुप्ता ने आगे कहा की हम सभी को इस प्रकार के छोटे छोटे उपक्रमों के माध्यम से लगातार प्रयास करते रहना चाहिए ताकि देश और समाज को पूर्ण विकसित युवा मिल सकें। पूर्ण विकसित युवा का मतलब है की जो शारीरिक , मानसिक , सामाजिक और आद्यात्मिक सभी से परिपूर्ण हो। तभी अभिभावक दिवस या इस प्रकार के जितने भी आयोजन और त्यौहार है वो सही मायने में साकार हो पाएंगे। हम सभी की यह बराबर जिम्मेदारी है।