स्वास्थ्य सेवा के मजबूत स्तम्भ मेडिकल प्रतिनिधि बने फार्मा कंपनियों की कमाई का मोहरा, दुर्दशा के खिलाफ मुहिम आरम्भ
एमआर यानी मेडिकल प्रतिनिधि, स्वास्थ्य सेवा में एक महत्वपूर्ण स्तम्भ है। मेडिकल प्रतिनिधि स्वास्थ्य सेवा आउटरीच को बढ़ावा देते हैं। नजदीक से अध्ययन करने पर ऐसा पाया गया की मेडिकल प्रतिनिधि समाज फर्मास्युटिकल कारपोरेट सेक्टर के इशारे पर नाचने वाला मोहरा बन कर रह गया है। इसी मोहरे के माध्यम से फार्मा कंपनियां अरबों रूपये का कारोबार करती हैं। देहाती भाषा में कहा जाए तो गौमाता को इंजेक्शन लगाकर पूरा दूध दुह लेना और उसके बाद भी अगर कुछ दूध थन में बच गया तो वो गाय के बच्चे की किस्मत है। जिस प्रकार गाय का बच्चा अपनी यह वेदना किसी से कह नहीं पाता है। एमआर की भी वही स्थित होती है। एमआर की स्थित और ज्यादा दयनीय होती है क्यूंकि वह एक इंसान है। सामाजिक प्राणी है। उसके पास परिवार है। सपने हैं। यार दोस्त हैं। उसका जीवन गाय के बच्चे से भी ज्यादा बुरा हो जा रहा है। जबकि एक एमआर बनने के लिए व्यक्ति के अंदर बहुत सारी योग्यताएं जैसे संचार कौशल, समय प्रबंधन कौशल,संबंध निर्माण कौशल , अनुकूलनशीलता एवं कम्प्यूटर कौशल आदि होना अत्यंत आवश्यक होता है। एक सफल एमआर होने के लिए फार्मा उत्पादों को प्रभावी ढंग से बढ़ावा देने और बेचने के लिए तकनीकी ज्ञान, बिक्री कौशल और पारस्परिक कौशल के संयोजन की आवश्यकता होती है। कोई भी मौसम हो कोई भी आपदा हो उन्हें काम करना ही है। विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में भी उन्हें काम करना ही होता है। कोरोना में जान की बाजी लगाकर प्रतिनिधियों ने स्वास्थ्य सेवा को रुकने नहीं दिया। उसके बावजूद भी फार्मा कंपनियों के दांवपेंच ऐसे हैं की कभी भी प्रतिनिधियों को जॉब मुक्त करने का फरमान जारी कर सकती हैं। इतनी कुशलताओं के बाद भी एमआर की ऐसी दुर्दशा समाज के लिए बहुत कष्टदायक है। कई बार यह बात भी सत्य साबित होती दिखती है की इस रोजगार से बेहतर बेरोजगार होना है। कई स्थितियों में एमआर को अपनी नौकरी और साख बचाने के लिए अपने घर से पैसे लगाने पड़ते हैं, ऋण लेना पड़ता है। ऐसे सैकड़ों कारण हैं जो स्वास्थ्य सेवा को बेहतर बनाने वाले स्तम्भ को खुद के स्वास्थ्य की बलि चढ़ते हुए देखना पड़ता है । कंपनियों द्वारा आयोजित मीटिंग्स में बहुत इनलोगों की मानवीय गरिमा को तारतार कर दिया जाता है। एमआर के परिवारीजनों का स्वास्थ्य , मनोदशा लिख पाना बहुत मुश्किल है। सुगर , ब्लूडप्रेशर , डिप्रेशन और अन्य रोग उन्हें फार्मास्युटिकल कंपनियों द्वारा दिए गए उपहार हैं। एमआर ज्यादातर युवा होते हैं। देश में युवाओं का ऐसा शोषण अत्यंत चिंताजनक है। जिस और सरकार को ध्यान देना ही चाहिए। एक्शन विचार डॉट काम इस और कदम बढ़ा रहा है। आप सभी के सहयोग के बिना परिणाम तक पहुँच पाना बहुत मुश्किल होगा। हमारा उद्देश्य सरकार से समाधान कराना है जिसके लिए वैधानिक तरीके ही अपनाये जायेंगे। आज ही एक्शन विचार डॉट काम की तरफ से 6 सूत्रीय मांगों का ज्ञापन प्रधान मंत्री के माध्यम से कॉर्पोरेट मंत्रालय को भेज दिया गया है। समय समय पर अपनी मुहिम की जानकारी आप सब तक प्रेषित करते रहेंगे।