कार्यभार संभालने जा रही मोदी सरकार आर्थिक मामले में खुद को ज्यादा सहज स्थिति में महसूस करेगी

संपादक की कलम से

कार्यभार संभालने जा रही मोदी सरकार आर्थिक मामले में खुद को ज्यादा सहज स्थिति में महसूस करेगी


संपादक की कलम से

कार्यभार संभालने जा रही मोदी सरकार आर्थिक मामले में खुद को ज्यादा सहज स्थिति में महसूस करेगी। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा  जारी आंकड़ों से पता चलता है कि वित्त वर्ष 2023-24 में भारतीय अर्थव्यवस्था ने उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया है। सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 8.2 फीसदी की बढ़त हुई है।

जबकि पिछले साल इसमें 7 फीसदी की बढ़त हुई थी। मतलब है की अर्थव्यवस्था पिछले तीन साल में लगातार 7 फीसदी या इससे ज्यादा की दर से आगे बढ़ी है। रिजर्व बैंक सहित कई अन्य अनुमानों से पता चलता है कि मौजूदा साल में भी वृद्धि दर 7 फीसदी के आसपास ही रहेगी ।  सरकार के राजकोषीय मजबूती की तरफ कदम बढ़ाने के बावजूद अर्थव्यवस्था अच्छी दर से आगे बढ़ रही है। सरकार के वित्तीय आंकड़ों से यह पता चलता है कि कर संग्रह में अच्छी बढ़त की वजह से वित्त वर्ष 2023-24 में राजकोषीय घाटा जीडीपी के 5.6 फीसदी पर है।  जबकि अंतरिम बजट के संशोधित अनुमानों में इसके 5.8 फीसदी तक रहने की बात कही गई थी।आर्थिक वृद्धि और राजकोषीय स्थिति के अलावा अगली सरकार को इस तथ्य से भी राहत मिलेगी कि महंगाई के मोर्चे पर हालत में सुधार हो रहा है।  वैसे तो  समग्र महंगाई दर अब भी भारतीय रिजर्व बैंक के लक्ष्य से ऊपर है। इसके अलावा बैंकों और कॉरपोरेट का बहीखाता मजबूत दिख रहा है। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार भी सहज स्थिति में है।  जो बाह्य मोर्चे पर स्थिरता प्रदान करता है। पिछले कई वर्षों में व्यापक आर्थिक स्थिरता को बढ़ाने के नीतिगत प्रयास सफल रहे हैं।  हालत 10 साल पहले से काफी अलग है।  जब राजग सरकार ने पहली बार कार्यभार संभाला था। कुछ महीने पहले ही भारत भुगतान संकट से बाल-बाल बचा है।  भारतीय अर्थव्यवस्था के कई तरह के दबावों से जूझ रही थी। वैसे तो जीडीपी डिफ्लेटर और रियल व नॉमिनल ग्रोथ में अंतर के बारे में कुछ सवाल उठे हैं।  लेकिन कुल मिलाकर देखें तो देश की आर्थिक मजबूती को सभी स्वीकार कर रहे हैं। नॉमिनल जीडीपी के हिसाब से देखें तो हमारी अर्थव्यवस्था पिछले वित्त वर्ष में 9.6 फीसदी बढ़ी है।  जबकि इसके एक साल पहले इसमें 14.2 फीसदी बढ़त हुई थी। इसके अलावा  यह स्वीकार करना भी अहम होगा कि कोविड महामारी के बाद अर्थव्यवस्था में सुधार काफी हद तक ऊंचे सरकारी खर्च की बदौलत हुआ है।  जिस पर आगे अंकुश लगाने की जरूरत होगी।  जब सरकार राजकोषीय मजबूती की दिशा में और कदम बढ़ाएगी।हालांकि मौजूदा वर्ष में राजकोषीय घाटे का लक्ष्य हासिल करना कठिन नहीं होगा।   यह देखते हुए कि रिजर्व बैंक उम्मीद से बहुत ज्यादा अधिशेष हस्तांतरण करने जा रहा है। इसलिए इस तरह की सहज स्थिति को देखते हुए नई सरकार के लिए यही सलाह है कि वह जुलाई में पेश होने वाले बजट में राजकोषीय मजबूती पर आगे बढ़ते हुए इसे जीडीपी के 3 फीसदी या कम पर लाने का एक संशोधित क्रमिक मार्ग पेश करे। इससे बाजार का भरोसा बढ़ेगा और निजी निवेश में सुधार लाने में मदद मिलेगी।मध्यम अवधि के लिए निजी निवेश में सुधार अर्थव्यवस्था में तरक्की का सबसे अहम कारक होगा और अगली सरकार को इस पर खास जोर देना चाहिए। हालांकि, कमजोर निजी खपत निजी निवेश में अड़चन बन सकती है, खासकर जब विदेशी मांग भी अपेक्षाकृत कमजोर रहने का अनुमान है।अगली सरकार के लिए एक बड़ी आर्थिक नीतिगत चुनौती यह होगी कि भारत की विदेशी प्रतिस्पर्धात्मकता में किस तरह से सुधार किया जाए। इसके लिए व्यापार नीति सहित कई स्तरों पर नीतियों की समीक्षा और बदलाव की जरूरत होगी।निर्यात में लगातार ऊंची वृद्धि निवेश बढ़ाने, अत्यधिक जरूरी नौकरियों के सृजन में मदद कर सकती है और इससे कुल मिलाकर गुणवत्तापूर्ण वृद्धि में सुधार होगा। इस संबंध में भारत भू-राजनीतिक बदलावों का फायदा उठा सकता है और चीन प्लस वन जैसे बदलाव का प्रमुख हिस्सा बन सकता है।कुल मिलाकर देखें तो अगली सरकार को संभवत: अब तक का सबसे अच्छा आर्थिक प्रारंभिक बिंदु मिलेगा, लेकिन उसके लिए चुनौती इसे बनाए रखने की होगी ताकि देश का तीव्र और संतुलित आर्थिक विकास हो सके।

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